पृथ्वी का इतिहास -पृथ्वी कैसे बनी, उत्पत्ति, संरचना,और इतिहास |History of the Earth - How the Earth Formed, Origin, Structure, and History In Hindi
पृथ्वी का इतिहास -पृथ्वी कैसे बनी, उत्पत्ति, संरचना,और इतिहास |History of the Earth - How the Earth Formed, Origin, Structure, and History In Hindi
हम आपको धरती के निर्माण से लेकर अभी तक सारी घटनो का वर्ण करेंगे(We will describe to you all the events from the creation of the earth till now.):-
क्या कभी सोचा है कि वो आग (Fire) का गोला ठंडा (Cold) क्यूँ हुआ होगा? आग में पानी (Water) कहाँ से आ गया? चाँद (Moon) कैसे बना? ऐसे ही सवालों (Questions) का जवाब आज हम आपको देने वाले हैं। आइये जानते हैं पृथ्वी (Earth) का इतिहास (History) या धरती कि उत्पत्ति के बारे में
पृथ्वी का इतिहास (history of earth) :-
पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण (Important) घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास (History) की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी (Earth) की आयु ब्रह्माण्ड (Universe) की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड (time period) के दौरान व्यापक भूगर्भीय (geological) तथा जैविक (organic) परिवर्तन हुए हैं।
आज से लगभग 5 बिलियन साल पहले अन्तरिक्ष (Space) में कई गैसों के मिश्रण से एक बहुत ही जोरदार धमाका हुआ। इस धमाके से एक बहुत ही बड़ा आग का गोला बना जिसे हम सूर्य (Sun) के नाम से जानते हैं। इस धमाके (Blast) के कारन इसके चारों और धूल के कण फ़ैल गए। गुरुत्वाकर्षण (gravity) की शक्ति के कारन ये धूल के कण छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों में बदल गए। धीरे-धीरे ये टुकड़े भी गुरुत्वाकर्षण (Gravity) की शक्ति के कारन आपस में टकराकर एक दूसरे के साथ जुड़ने लगे। इस तरह हमारे सौर मंडल (Solar system) का जन्म हुआ।
कई मिलियन साल तक गुरुत्वाकर्षण शक्ति (gravitational force) ऐसे पत्थरों और चट्टानों को धरती बनाने के लिए जोड़ती रही। उस समय 100 से ऊपर ग्रह सौर मंडल (Solar system) में सूर्य का चक्कर लगा रहे थे। चट्टानों के आपस में टकराने के कारण धरती (Earth) एक आग के गोले के रूप में तैयार हो रही थी जिसके फलस्वरूप लगभग 4.54 बिलियन साल पहले धरती का तापमान (Temperature) लगभग 1200 डिग्री सेलसियस था।
अगर धरती (Earth) पर कुछ था तो उबलती हुयी चट्टानें, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और जल वाष्प। एक ऐसा माहौल था जिसमे हम चंद पलों में दम घुटने (suffocation) से मर जाते। उस समय कोई भी सख्त सतह नहीं थी कुछ था तो बस ना ख़त्म होने वाला उबलता लावा।
चाँद कैसे बना (how the moon formed)?
उसी समय एक नया ग्रह (planet) जिसका नाम थिया (Theia)। धरती की तरफ बढ़ रहा था। इसका आकार मंगल (Mars) ग्रह जितना था। इसकी गति 50k.m/sec. थी। जोकि बन्दूक से चली हुयी गोली से बीस गुना ज्यादा है। जब यह धरती (Earth) की सतह से टकराया तो एक बहुत बड़ा धमाका (Blast) हुआ जिससे कई ट्रिलियन कचड़ा धरती से बहार निकल गया और वह ग्रह धरती में विलीन हो गया।
कई हजार साल तक गुरुत्वाकर्षण (Gravity) अपना काम करती रही और धरती से निकले हुए कण कई हजार साल तक इकठ्ठा कर धरती के इर्द-गिर्द (around) एक चक्कर बना दिया। इस चक्कर से एक गेंद बनी जिसे हम चाँद (Moon) कहते हैं। ये चाँद उस समय 22000k.m. दूर था जबकि आज ये 400000k.m. दूर है। दिन जल्दी बीत रहे थे लेकिन धरती (Earth) में बदलाव धीरे-धीरे आ रहे थे।
3.9 बिलियन साल पहले पृथ्वी (Earth) की उत्पत्ति होने के बाद अन्तरिक्ष (Space) में बचे चट्टानों का धरती पर हमला होना लगा। आसमान से गिरते इन उल्का में एक अजीब से क्रिस्टल थे। जिन्हें आज नमक के रूप में प्रयोग किया जाता है। हैरानी की बात ये है कि जिन महासागरों से हम नमक निकालते समुद्र का पानी इन्हीं गिरने वाले उल्का के अन्दर मौजूद नमक से निकला है। आप के मन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर उल्का में मौजूद इतने कम पानी से सागर (Sea) कि उत्पत्ति कैसे हो सकती है? तो इसका जवाब है कि ये उल्का धरती (Earth) पर 20 मिलियन साल तक गिरते रहे जिस कारण धरती (Earth) पर काफी पानी इकठ्ठा हो गया।
धरती पर पानी इकठ्ठा होने के कारण धरती की ऊपरी सतह ठंडी (Cold) होने लगी और उबलती चट्टानें ठंडी होने के कारन सख्त होने लगीं। लेकिन धरती (Earth) के अन्दर लावा उसी रूप में मौजूद रहा। धरती का ऊपरी तापमान (70-80) डिग्री सेल्सियस हो चुका था। धरती (Earth) की सतह भी सख्त हो चुकी थी। धरती के वातावरण में बदलाव लाने के लिए ये तापमान (Temperature) और हालात एक दम सही थे।
धरती (Earth) पर आज जो पानी है वह कई बिलियन साल पहले का है। इसी पानी के नीचे सारी सख्त सतह ढक चुकी थी। चाँद (Moon) के पास होने के कारन उसके द्वारा लगने वाले गुरुत्वाकर्षण (Gravity) से धरती पर एक तूफ़ान सा आने लगा। उस तूफ़ान ने धरती पर उथल-पुथल मचा दी थी। समय के साथ चाँद (Moon) धरती से दूर होता गया और तूफान शांत हो गया। पानी कि लहरें भी शांत हो गयीं। अब धरती (Earth) की छाती से लावा फिर निकलने लगे और छोटे-छोटे द्वीप बनने लगे।
volcano
ये उल्का पानी में 3000 मीटर नीचे चले जाते थे। जहाँ सूर्य (Sun) की किरणें पहुँच नहीं पाती थीं। धीरे धीरे ये उल्कापिंड ठन्डे (Cold) होकर जमने लगे। इन्होंने एक चिमनी का आकर लेना शुरू कर दिया और ज्वालामुखी (Volcano) में पड़ी दरारों में पानी जाने से धुआं इन चिमनियों से निकलने लगा और पानी एक केमिकल सूप बन गया। इसी बीच पानी में समाहित केमिकलों के बीच ऐसा रिएक्शन हुआ जिससे माइक्रोस्कोपिक जीवन का प्रारंभ हुआ। पानी में सिंगल सेल बैक्टीरिया उत्पन्न हो चुके थे।।
पृथ्वी पर बिना पौधों के कहाँ से आई ऑक्सीजन(Where on earth did oxygen come from without plants)?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें 3.5 बिलियन साल पहले जाना पड़ेगा। ये वो समय था जब समुद्र कि निचली सतह पर चट्टानों जैसे पड़े पत्ते उग रहे थे। इन्होने एक कॉलोनी बना ली थी और इन पर जीवित बैक्टीरिया थे। इन पत्तों को स्ट्रोमेटोलाइट (Stromatolite) कहा जाता है। ये बैक्टीरिया सूर्य की रौशनी से अपना भोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहते हैं|
जिसमे यह सूर्य (Sun) की किरणों कि ताकत से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोस में बदल देता है। जिसे शुगर भी कहा जाता है। इसके साथ ही ये एक सहउत्पाद (Byproduct) छोड़ता है जोकि ऑक्सीजन गैस होती है। समय कि गति के साथ सारा सागर ऑक्सीजन गैस से भर गया। ऑक्सीजन के कारण पानी में मौजूद लोहे को जंग लगी जिससे लोहे के अस्तित्व का पता चला। लहरों के ऊपर ऑक्सीजन वायुमंडल में प्रवेश कर चुकी थी। यही वो गैस है जिसके बिना धरती (Earth) पर जीवन असंभव है।
2 बिलियन साल तक ऑक्सीजन गैस का स्टार (Stock) बढ़ता रहा। धरती के घूमने का समय भी कम होता रहा। दिन बड़े होने लगे। 1.5 बिलियन साल पहले दिन 16 घंटे के होने लगे थे। कई मिलियन साल बाद सागर के नीचे दबी धरती (Earth) की उपरी सतह कई बड़ी प्लेटों में बंट गयी। धरती के नीचे फैले लावा ने उपरी सतह को गतिमान कर दिया। इस गति के कारण सारी प्लेटें आपस में जुड़ गयी और बहुत विशाल द्वीप (island) तैयार हुआ।
लगभग 400 मिलियन साल के समय में धरती (Earth) का पहला सूपरकॉन्टिनेंट तैयार हुआ जिसका नाम था रोडिनिया (Rodinia)। तापमान (Temperature) घट कर 30 डिग्री सेल्सियस हो चुका था। दिन बढ़ कर 18 घंटे के हो चुके थे। धरती के हालात मंगल (Mars) ग्रह की तरह थे। 750 मिलियन साल पहले धरती के अन्दर से एक ऐसी शक्ति निकली जिसने धरती (Earth) कि सतह को दो टुकड़ों में बाँट दिया। और यह शक्ति थी ‘ताप’ जो कि धरती केनीचे पिघले हुए लावा से पैदा हुयी थी। जिसके कारन धरती (Earth) कि उपरी सतह कमजोर पड़ती गयी और धीरे-धीरे दोनों सतहें एक दूसरे से दूर होती चली गयीं। जिससे दो महाद्वीप (continent) बने :- साइबेरिया और गोंडवाना।
पृथ्वी कैसे बर्फ का गोला बनी (how the earth became a ball of ice):-
earth become a ball of ice
धरती के ऊपर जवालामुखी (Volcano) फटने का सिलसिला अभी जारी था। ज्वालामुखी के साथ निकलने वाले लावा के साथ निकलती थीं गैसें और हानिकारक कार्बनडाइऑक्साइड। वातावरण में फैली कार्बन डाइऑक्साइड ने सूर्य की किरणों को सोखना शुरू कर दिया। जिससे धरती का तापमान (Temperature) बढ़ने लगा। बढ़ते तापमान के कारन सागर के जल से बदल (Clouds) बने और कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति में मिल कर अम्लवर्षा (Acid Rain) की। बारिश के साथ आने वाली कार्बनडाइऑक्साइड को चट्टानों और पत्थरों ने सोख लिया। वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड ख़त्म हो जाने से कुछ हजार सालों में तापमान घट कर -50 देग्रे सेल्सियस हो गया। इस स्थिति वाली धरती को बर्फ की गेंद (Snow Ball) भी कहा जाता है। चारों तरफ बर्फ हो जाने के कारन सूर्य की किरणें धरती से परावर्तित (Reflect) हो जाती थीं और तापमान बढ़ नहीं पाता था। बर्फ और बढती चली जा रही थी।कैसे बदली बर्फ पानी में (how ice turned into water) :-
धरती का केंद्र अभी भी गर्म था। ज्वालामुखियों (Volcano) का फटना भी जारी था। लेकिन बर्फ इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि ज्वालामुखी (Volcano) से निकलने वाली वाली गर्मी उसे पिघला नहीं पा रही थी। परन्तु अब कोई ऐसा स्त्रोत नहीं था जो कार्बन डाइऑक्साइड को सोख पाता। सारे चट्टान और पत्थर बर्फ के नीचे दब चुके थे। एक बार फिर कार्बन डाइऑक्साइड ने अपनी ताकत दिखाई और सूरज (Sun) की गर्मी को सोखा कर बर्फ को पिघलने पर मजबूर कर दिया। अब तक दिन भी 22 घंटों के हो गए थे।
किस कारण हुआ भूमि पर जीवन संभव (What made life possible on land):-
बर्फ पिघलते समय सूर्य (Sun) से आने वाली पराबैंगनी (ultraviolet)हानिकारक किरणों से एक केमिकल रिएक्शन हुआ जिससे पानी में से हाइड्रोजन परऑक्साइड बनी और उसके टूटने से ऑक्सीजन। यही ऑक्सीजन गैस 50k.m. ऊपर वातावरण में पहुंची तो वह भी एक Chemical Reaction हुआ जिसे से जन्म हुआ जिससे ओजोन नाम की एक गैस बनी जो सूर्य (Sun) से आने वाली हानिकारक किरणों को रोकने लगी। जिसने इवान कि शुरुआत को एक आधार दिया। अगले 150मिलियन साल तक इस गैस की परत काफी मोटी हो गयी। इसके साथ ही पेड़-पौधे अस्तित्व में आये और ऑक्सीजन की मात्रा और बढ़ने लगी।
जानिए पृथ्वी कैसे बनी थी गुलाबी(Know how the earth was made pink) :-
जी हाँ, सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। पानी में से पहली मछली टिक टेलिक (Tic telic) बहार आने कि कोशिश कर रही थी।
250 मिलियन साल पहले siberian मैदानों में अचानक लावा धरती (Earth) से बहार निकलने लगा। और वहां के सभी जीव मर गए। Gondwana महाद्वीप में ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो। यहाँ तापमान (Temperature) लगभग 20 डिग्री सेल्सियस था।
अचानक वहां राख गिरनी शुरू हो गयी। जो कि 16000 k.m. दूर फटे ज्वालामुखी की थी। उस ज्वालामुखी (Volcano) से सल्फर डाइऑक्साइड निकली। और बारिश में वो गैस मिल कर सल्फ्युरिक एसिड बन गयी। जिसने सब कुछ जला दिया। जिसके कारण यहाँ भी सभी जीव जंतु मारे गए। इस से Carbondioxide की मात्रा बढ़ गयी। तापमान (Temperature) बढ़ गया और पानी सूख गया। भूमि पर जीवन ख़त्म था।
सागर गुलाबी (Pink) होने लगा था। सब कुछ गायब हो चुका था न पेड़ पौधे थे न जीव जंतु। सागर में कुछ था तो बाद गुलाबी शैलाव (Algae)। गर्म वातावरण और गरम सागर में बिना ऑक्सीजन अगर कोई चीज बाख सकती थी वो था शैलाव (Algae)। सागर के पानी में मीथेन गैस के बुलबुले निकलने लगे। अभी तक यह गैस जमी हुयी थी पर सागर के तापमान (Temperature) के बढ़ने से यह पिघल कर बहार आने लगी। यह गैस Carbondioxide से 20 गुना जहरीली है। सब कुछ ख़त्म हो गया था और धरती (Earth) फिर उसी स्थिति में थी जिसमे उस समय से 250 मिलियन साल पहले थी।
पृथ्वी पर फिर से बना एक सुपरकॉन्टिनेंट(A supercontinent re-formed on Earth) :-
Earth supercontionent
ज्वालामुखी के फटने और लावा के बिखरने से दोनों महाद्वीप फिर से जुड़ गए और 250 मिलियन साल पहले दुबारा एक सुपरकॉन्टिनेंट बना पेंगिया (Pengea)। जो कि एक ध्रुव (Pole) दूसरे ध्रुव तक फैला हुआ था।
पृथ्वी फिर से कैसे बनी रहने लायक (How Earth Sustainable Again) :-
65 मिलियन साल पहले एक बड़े पहाड़ माउंट एवरेस्ट से बड़ा क्षुद्रग्रह (Asteroid) 70000k.m. कि गति से धरती कि तरफ आ रहा था। उसका केंद्र मेक्सिको था। इसके गिरने से कई मिलियन न्यूक्लियर बम जितनी ताकत पैदा होती है। इसके गिरने के बाद धरती पर सब कुछ तबाह हो गया और वायुमंडल में धूल का घना कोहरा छा गया। भूमि का तापमान 275 डिग्री सेल्सियस हो गया। सारे पेड़-पौधे और जीव जंतुओं का अंत हो गया।
एक बार फिर से धरती के वातावरण में बदलाव आया और सब कुछ सामान्य होने पर शुरुआत हुयी स्तनधारी जीवों की। जो आज तक चल रही है। होमोसेपियंसइन्सान की वो जाती जिसमे हम सब आते है। इनका विकास 40000साल पहले हुआ था। इसके बाद वो दुनिया बनी जो आप आज देखते हैं।
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